जनता पार्टी के सदस्य सिबिन हरीदास ने अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है कि भारत को एक सशक्त समाजवादी नेता की आवश्यकता है और हमें बिखरे हुए समाजवादियों को एकत्र करने का प्रयास करना चाहिये .
मैने इसका उत्तर दे दिया ,फिर मुझे लगा कि यह वास्तव में एक बड़ा प्रश्न है और इस पर बहस होना चाहिये.
सभी मुद्दों को समेटना एक टिप्पणी में सम्भव नहीं है और मैं इसे समय समय पर पूरा करूंगा. सबसे पहले कहां हैं समाजवादी नेता ?
1950 के बाद लोकनायक जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, आचार्य कृपलानी, बाद में डा. राम मनोहर लोहिया, चन्द्रशेखर ,मधु लिमये, मधु दंडवते, कृष्णकांत, मोहन धारिया, प्रमिला दंडवते, राजनारायण,मृनाल गोरे आदि के अतिरिक्त बाद की पीढी में सत्य प्रकाश मालवीय, जनेशवर मिश्र, मुलायम सिंह,राम विलास पास्वान, मोहन सिंह, बृज भूशण तिवारी, लालू प्रसाद ,नितिश कुमार, सुषमा स्वराज आदि सभी समाज्वादी आन्दोलन की पृष्ठ भूमि से ही राजनीति में आये. इनमें से कई बडे नेताओं ने अपने अपने गुट बनाये .कारण वही कि समाजवादियों के बारे में कहा जाता रहा है कि यह एक वर्ष अलग नहीं रह सकते,अत: इकट्ठे हो जाते है,परंतु एक वर्ष साथ नहीं रह सकते इसलिये अलग हो जाते हैं .
यह संगठन और टूटन बदस्तूर जारी रही और अब जब कि भारत में यह आन्दोलन समाप्त प्राय ही है,और समाजवादी विचार्धारा के लोग सभी पार्टियों में बिखरे हुए हैं,और एक नीति के रूप में उनका महत्व भी कम हो गया है.
समाजवाद के नाम पर इस समय बड़ी पार्टी है मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी जो पिछले बीस वर्षों से अस्तित्व में है. परंतु यह कितनी समाजवादी है ,यह सभी जानते हैं . कभी अमर सिंह इसी समाजवादी पार्टी के प्रमुख चेहरे थे.
अवश्य इस मुद्दे पर लम्बी बहस की जा सकती है, परंतु इस समय मैं मात्र एक बात कहना चाहता हूं. लोहिया को अपना नेता मानने वाले मुलायम सिंह लोहिया के सिद्धांतों का कितना पालन कर रहे हैं,सबके सामने है.
डा. लोहिया परिवार वाद के नितांत खिलाफ थे ,उन्होने नेहरू के समाजवाद की जम कर खिंचाई की. आज लोहिया के चेले मुलायम सिंह की पार्टी में सिर्फ परिवार वाद का ही बोलबाला है. उनके भाई राम गोपाल यादव सपा में महासचिव हैं, दूसरे भाई शिव पाल उ.प्र. सरकार मे वरिष्ठ मंत्री हैं और बेटा मुख्य मंत्री है. बहू कन्नौज से सांसद है, भतीजा धरमेन्द्र यादव भी सांसद है, अब एक और भतीजे को फिरोज़ाबाद से प्रत्याशी घोषित किया गया है. यह है लोहिया के सिद्धांतों की पार्टी ?
अन्य मुद्दे बाद में फिर कभी......
मैने इसका उत्तर दे दिया ,फिर मुझे लगा कि यह वास्तव में एक बड़ा प्रश्न है और इस पर बहस होना चाहिये.
सभी मुद्दों को समेटना एक टिप्पणी में सम्भव नहीं है और मैं इसे समय समय पर पूरा करूंगा. सबसे पहले कहां हैं समाजवादी नेता ?
1950 के बाद लोकनायक जय प्रकाश नारायण, आचार्य नरेन्द्र देव, आचार्य कृपलानी, बाद में डा. राम मनोहर लोहिया, चन्द्रशेखर ,मधु लिमये, मधु दंडवते, कृष्णकांत, मोहन धारिया, प्रमिला दंडवते, राजनारायण,मृनाल गोरे आदि के अतिरिक्त बाद की पीढी में सत्य प्रकाश मालवीय, जनेशवर मिश्र, मुलायम सिंह,राम विलास पास्वान, मोहन सिंह, बृज भूशण तिवारी, लालू प्रसाद ,नितिश कुमार, सुषमा स्वराज आदि सभी समाज्वादी आन्दोलन की पृष्ठ भूमि से ही राजनीति में आये. इनमें से कई बडे नेताओं ने अपने अपने गुट बनाये .कारण वही कि समाजवादियों के बारे में कहा जाता रहा है कि यह एक वर्ष अलग नहीं रह सकते,अत: इकट्ठे हो जाते है,परंतु एक वर्ष साथ नहीं रह सकते इसलिये अलग हो जाते हैं .
यह संगठन और टूटन बदस्तूर जारी रही और अब जब कि भारत में यह आन्दोलन समाप्त प्राय ही है,और समाजवादी विचार्धारा के लोग सभी पार्टियों में बिखरे हुए हैं,और एक नीति के रूप में उनका महत्व भी कम हो गया है.
समाजवाद के नाम पर इस समय बड़ी पार्टी है मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी जो पिछले बीस वर्षों से अस्तित्व में है. परंतु यह कितनी समाजवादी है ,यह सभी जानते हैं . कभी अमर सिंह इसी समाजवादी पार्टी के प्रमुख चेहरे थे.
अवश्य इस मुद्दे पर लम्बी बहस की जा सकती है, परंतु इस समय मैं मात्र एक बात कहना चाहता हूं. लोहिया को अपना नेता मानने वाले मुलायम सिंह लोहिया के सिद्धांतों का कितना पालन कर रहे हैं,सबके सामने है.
डा. लोहिया परिवार वाद के नितांत खिलाफ थे ,उन्होने नेहरू के समाजवाद की जम कर खिंचाई की. आज लोहिया के चेले मुलायम सिंह की पार्टी में सिर्फ परिवार वाद का ही बोलबाला है. उनके भाई राम गोपाल यादव सपा में महासचिव हैं, दूसरे भाई शिव पाल उ.प्र. सरकार मे वरिष्ठ मंत्री हैं और बेटा मुख्य मंत्री है. बहू कन्नौज से सांसद है, भतीजा धरमेन्द्र यादव भी सांसद है, अब एक और भतीजे को फिरोज़ाबाद से प्रत्याशी घोषित किया गया है. यह है लोहिया के सिद्धांतों की पार्टी ?
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